Sunday, December 1, 2013

" तुम "


तुम मेरे पास नही,
विश्वास करना आज भी पूर्णतया असंभव है,
आज हमारे बीच शंका कि कई परते हैं,
और इनके तहो में दबी हुई, फसी हुई, घुटी हुई है भावनाएं,
परन्तु अब भी यही आभास होता है
मानो तुम निकट हो बहुत
साथ-साथ चलते हुए से प्रतीत होते हो,
आज ये भीड़-भाड़, बाजे-शहनाई बेचैन करती हैं,
केवल अकेलापन रास आने लगा है,
जीवन का एक विचित्र मोड़ आ गया है,
पीड़ादेह दयनीय दशा व्याप्त है,,
मन के भाव भरे कमरे में
किन्तु न आह निकाल सकते हैं,
न ही रो सकते हैं,,
दोनों ही स्थिति में
कई प्रश्न पनप उठेंगे लोगो के मन में,
कौन क्या अर्थ निकाले इस विच्छेद का
ये अनुमान लगा पाना कठिन है,
प्रत्येक जिह्वा नवीन सन्दर्भ देगी,
चुप्पी साध ली है मैंने
ये सोचकर यदि तुम्हे मेरे संताप से
कोई अंतर नही पड़ता
तो फिर ये समाज ये दुनिया तो केवल
हास्या का माध्यम खोजती है
कल कोई और था इस परिधि में,
आज मैं आ जाउंगी,
तुम कुछ भी अनुमान लगाओ
परन्तु सत्य तो ये है
ये कोई मन बहलाव का किस्सा नहीं,
जिसे पढ़ कर भूल जाया जाए,
ये आत्मा तक को तराश देने वाला प्रेम है,,
 




रचनाकार : परी ऍम 'श्लोक'

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