Saturday, December 14, 2013

! ! ! आँसू ! ! !



टपकते लहर कि हर धार
बेपनाह बेचैनियों के
पातो को धोता हुआ
व्यग्रता में सने हुए
ह्रदय कि मुरझाहट को
हरा कर गुजरता है......
बेशक कुछ पल के लिए
भावनाओ कि शीतल प्रकृति है आँसू !

इक मौसम के लिए
समस्त अपने पक्ष में कर
सब स्थिर और शांत कर देती है
गूंजने देती है
सिसकियो को बेहिचक बेझिझक
अनगिनत पीड़ा को
अनकही चुप्पियों के साये में आँसू!

हमदर्दो को ख़ुदग़र्ज़ो को
खींच लाती है जहाँ तहाँ से
और इकठ्ठा कर लेती है
अपने इर्द गिर्द
विवश कर देती है
बहने के कारण पर विचार को
जब भी चलता है
मन के संताप से आँखों के सफ़र पर आँसू !

नमकीन पानी है आंसू
जो ढोकर लाती है
भीतर जमे हुए जलते बर्फीले कलेश को
और छान कर रुमाल, दामन, धरा को भिगो जाती है
आँसू!!!

क़यामत तो नहीं
बस बहुत राहत देती है आँसू!!!

रचनाकार: परी ऍम 'श्लोक'
14/12/2013

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