Monday, December 2, 2013

'मुल्क-ए-माहौल'


क्यूँ शहर भर में कोहराम मचा रखा है,,,,किसी को फकीरी ने ,,, किसी को 'महंगाई' ने रुला रखा है,,

कोई मर रहा है प्यास के मारे,,,तो किसी पे कुदरत ने कहर ढा रखा,,,

कहीं बुझती नहीं हैं रात भर उजालो की आँखें,,,
कहीं अंधेरो ने काला लिबास गाँवों को उढ़ा रखा है!!

तेरा जेब भर गया तो तू सियासत करने निकला है,,,,
मुझे तो पेट की भूख ने पागल बना रखा है,,,

 
नौकरी की तलाश में फिर रहा हूँ शहर - शहर,, 'श्लोक'
बेरोजगारियो' ने मेरा हर ख्वाब मिट्टी में मिला रखा है,,

हिदायत देते हैं सब बेटियो  को घर में ही रहा कर,,,
'मुल्क--माहौल' ने माँ-बाप की नींदों को उड़ा रखा है,,,

करते हो बाल मजदुरियो को रोकने की बात,,
जरा झांको वाकिफ चेहरों आँगन में,,,
नजाने कितने मासूम किरदारों को नौकर बना रखा है,,,,

गरीब लाये कहाँ से पैसा की बच्चे पढ़े बड़े स्कूल में,,,
शिक्षको ने 'शिक्षा' को ही व्यापार बना रखा है,,,

 
किस पे करें यकीन की वो बदलेगा मुल्क का चेहरा,,
हर किसी ने अपने चहरे पे कई नकाब चढ़ा रखा है,,,,

 
मैं लिखना चाहती हु वो शब्द वो बयां करे खुबसूरत “BHARAT” को ,,,
पर 'हालातो' ने भविष्य के हर पन्ने पे स्याही गिरा रखा है,,,
 
ग़ज़लकार : परी ऍम 'श्लोक'

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