Monday, December 2, 2013

"मेरा मकसद नहीं लव्जों को मनोरंजन बना देना"


 
"मेरा मकसद नहीं लव्जों को मनोरंजन बना देना,
ये आरज़ू है हर अल्फाज़ से एक मुद्दा उठा देना, 

सो रहे हैं सकून से जो लोग A/C  के घरो में,
उनके सीने में भी बदलाव कि मशाल जला देना 

तूफ़ान लेकर चल रही हुँ अपनी कलम में,
है इक झोंके से मौकापरस्तों का आशियाँ गिरा देना, 

घुट-घुट के जीना छोड़ दो ये कायरो का काम है,,
बस मेरी आवाज़ के बाद तुम हुँकार लगा देना,, 

अभी कहाँ हुए हैं हम रुक्सत बुराईयो के कैद से,
इनकी लाशो पे चढ़ के आज़ादी का परचम लहरा देना, 

हो जिन्दा तो जिन्दादिलो कि तरह जियो जहान में,
जब भी दिखे गलत तो हाथ में तलवार उठा लेना,,

ग़ज़लकार : परी ऍम 'श्लोक'
Dated : 16/11/13

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