Tuesday, December 10, 2013

"बस चले तो बेच दे इश्क़ को दुकान पे"


अब कहाँ वो ज़स्बा है जो ले चले मुकाम पे
बस चले तो बेच दे इश्क़ को दुकान पे

इस तरह से जिद्द में आ गयी जस्बातों कि नंगाइयां
लाल दुपट्टा खींच के लहरा दिया मकान पे 

डर कि धमक सुन कर दरवाज़ा बंद किया है 'श्लोक"
गली से गुजरा इक लुटेरा इज़हार लिए जुबान पे


ग़ज़लकार : परी ऍम 'श्लोक'
11/12/13

No comments:

Post a Comment

मेरे ब्लॉग पर आपके आगमन का स्वागत ... आपकी टिप्पणी मेरे लिए मार्गदर्शक व उत्साहवर्धक है आपसे अनुरोध है रचना पढ़ने के उपरान्त आप अपनी टिप्पणी दे किन्तु पूरी ईमानदारी और निष्पक्षता के साथ..आभार !!