Monday, December 2, 2013

घुटन


कैसा प्रतीत होता है?
जब हम कुछ कहना चाहें
किन्तु कह न पाये!
मानो तोते को बोल सिखा
उसके मुख को सिल दिया गया हो
कोयल कि कूकती आवाज़ खो गयी हो,
बदली देख नाचता हुआ मोर,
अपने बदसूरत पैरो को देख
उलाहना ना दे पाया हो किसी को,
हरी कोमल दूब को पैरो से मसला जा रहा हो
कोई खिला हुआ मंजुल गुलाब
मोटी किताब के बीच रख दिया हो,
जैसे किसी लेखक से कलम छीन ली गयी हो,
बवंडर उठ रहा को कमरे के भीतर,
किन्तु बाहर ना आ पा रहा हो

कैसे प्रतीत होता है?
जब भीतर घुटन व्याप्त हो,
और परिचितो कि भीड़ सामने कतार में खड़ी हो,
किन्तु आपकी व्यथा सुनने या समझने वाला कोई नहीं,

 कैसे प्रतीत होता है?
आखिर कैसा??

रचनाकार : परी ऍम 'श्लोक'
Dated : 21/11/13

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