Wednesday, January 1, 2014

मुझे जानना है????

मुझे जानना है?
तो आओ!
ले चलती हूँ तुम्हे
मेरे घर तक...
घर के उस कमरे तक
जहाँ मैं शाम के चंद पल से
सुबह के कुछ पहर तक होती हूँ और
होती है मेरे साथ वो डायरी "परछाई"
जिससे कहती हूँ मैं
मीठी, खट्ठी कड़वी हर बात
खींचती रहती हूँ लकीर पर लकीर
उसके नाज़ुक शरीर पर
उदार श्रोता है वो... 
उससे पूछना मैं कैसी हूँ?
तुम्हे संघनित विवरण देगी
उन दोस्तों, रिश्तो, अज़ीज़ के
और मेरे आत्महित बयान से
या तो उलट या थोड़ा भिन्न
बिना पक्षपात के बताएंगी
तुम्हे अपनी नज़र का सच
नज़रिये का सच 
मेरे व्यक्तित्व के प्रत्येक पहलु का सच!! 

रचनाकार : परी ऍम 'श्लोक'
 

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