Saturday, January 4, 2014

"असलियत"


इक दौर निकल जाने के बाद मेरी दोस्त  सुन
हासिल अफ़सोस के नज़राने के सिवा कुछ नहीं मिलता..

तब्दील हो जाए कोई फैसला जब शज़र-ए-कांटो में
नाज़ुक दिल को घावो के सिवा कुछ नहीं मिलता..

किस ओर निकल जाऊं कि आराम पहलुओ में आ जाए
मुझे खुद कि दीद में भी नफरत के सिवा कुछ नहीं दिखता..

हर शख्स सना हुआ लगता है धोखे कि राब में
हसीन चेहरो में नकाबो के सिवा कुछ नहीं मिलता..

बेबसी कि रेत पसरी है सेहरा कई मुद्दत से सवाली है
प्यास के नाम पर फुवाहारो के सिवा कुछ नहीं मिलता..

कहाँ खिलता है इस चमन में बेमकसदन गुलाबी फूल
ख़ूनी नियत में औज़ारो के सिवा कुछ नहीं मिलता..

तोड़ती जा रही है बुलंदियों के लिए वायदे मशगूल सी दुनिया
हसरतो के बाज़ार में बीमारो के सिवा कुछ नहीं मिलता..

ये तजुर्बा उम्र का कानो में चीखता बहुत है आज-कल
'श्लोक' कि तकदीर को दरारो के सिवा कुछ नहीं मिलता..


ग़ज़लकार: परी ऍम 'श्लोक'
Dated : 04/01/2014

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