Friday, January 17, 2014

खो गया बचपन

मुझे  आज उस लड़की को
ढूंढने का मन कर रहा है
जो पंद्रह साल पहले
पीछे कहीं छोड़ आयी हूँ
जिसको बहुत प्यारी थी अपनी
पीले रंग कि टाई वाली फ्राक
आसमानी-क्रीम रंग का सूट
जिसको लगा देती थी माँ
मोटा-मोटा काज़ल आँखों में
वो जब हसती थी
तो सबको हसा के रख देती थी
और जब रोती थी
तो आस-पास के लोग
पूछने आ जाते थे कारण
जिसे अच्छा लगता था
खेतो में लगे ट्यूबल में नहाना
आम-अमरुद-शहतूत सब पकने से
पहले ख़तम कर देना
जिसका सपना था काला कोट
जिससे बातो में जीत पाना
किसी के लिए भी मुमकिन न था
सुन्दर सपनो कि वो लड़की
इस उम्र के फासले में धुंधली
पड़ती चली गयी उसकी छवि 
और अब एकदम लुप्त हो गयी
वो नटखट लड़की
भूल गयी बचपना बन गयी सज्ञान
और न जाने कहाँ रह गयी..
दब गयी वो हालातो के पहाड़ के नीचे
समझदारी कि कठपुतली बनके
अब अक्सर वो दिखाती है
वो जो वो महसूस नहीं करती
दिखावा और बिन रुके चलते रहना
अनाहक में 
सीख ही लिया उसने भी !!



रचनाकार : परी ऍम 'श्लोक'
Dated : 17th Jan, 2014
(Dedicated to me)

No comments:

Post a Comment

मेरे ब्लॉग पर आपके आगमन का स्वागत ... आपकी टिप्पणी मेरे लिए मार्गदर्शक व उत्साहवर्धक है आपसे अनुरोध है रचना पढ़ने के उपरान्त आप अपनी टिप्पणी दे किन्तु पूरी ईमानदारी और निष्पक्षता के साथ..आभार !!