Thursday, March 20, 2014

!! मैं लौ कि तरह हर जहन में जलना चाहती हूँ !!


मैं ज़माने कि सोच से आगे निकलना चाहती हूँ
तपी धरती और तेज़ धूप के बीच चलना चाहती हूँ

मासूमियत ने वज़ूद को बड़ी चोट दी है इसलिए
मैं अपने किरदार कि ये अदा बदलना चाहती हूँ

जिंदगानी ने हर मोड़ पर रुस्वाई कि है हमसे
मगर मोहोब्बत से इसे आग़ोश में भरना चाहती हूँ

किसी ने न सोचा हो सुना हो न चाहा हो कभी
कुछ जुदा सा कारनामा मैं करना चाहती हूँ

वैसे तो फैसलो ने खता बनके कांटे चुभोये हैं
मैं फिर भी हर सबक से सवरना चाहती हूँ

न चांदनी न रोशनी न ही आग न कोहीनूर
मैं इनसे भी निखरे अंदाज़ में उतरना चाहती हूँ

हदे, सरहदे, मझधार होती होंगी ज़माने के लिए
मैं फ़िज़ा कि तरह हर ज़ब्त से गुजरना चाहती हूँ

सितारो को अपने आँचल में अंधेरो को काजल में
बरसात कि हर बूँद को आजुरियो में भरना चाहती हूँ

मुझे बयान करेगी तारिख मेरे जाने के बाद भी
मैं लौ कि तरह हर जहन में जलना चाहती हूँ 

ग़ज़लकार : परी ऍम श्लोक

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