Tuesday, March 25, 2014

"आज भी निरंतर"

वक़्त बह रहा है
सब कुछ बदल गया है
यहाँ से वहाँ तक
हर साया करवट ले चुका है
बदलाव हर ज़र्रे के
रोम-रोम में समा गया है
मगर मैं अब शिला हो गयी हूँ
जहाँ कल थी वहीँ आज भी
न इससे पीछे जाने कि
हिम्मत बाँध पायी हूँ मैं
न किसी ने आगे
ले चलने का ढाढस बांधा
काट के रास्ता बनाते रहे
मेरे सपनो के सुनहरे पंखो को
मेरे मन के कोमल माटी में 
उगे हैं उदासी के कांटे
जो मुझे चुभते हैं
मगर अब अपने दर्द को
तवज्जु देना भी नहीं चाहती
बेशक उस पड़ाव पे सिमट कर
अब एक इंतज़ार है
मेरी साँसों के
साथ-साथ चलती हुई
कि कभी तुम आओगे
मुझे छूकर मेरी भीतर
तमन्नाओ का बीज बोने को
मुझमे जिंदगी कि रोशनी को
सही मायने में उजागर करने को
ये हसरत उस शिला को
बेअहसास नहीं होने देती
और चलती रहती है
हर कठोरता के बावज़ूद
उसके भीतर एक मिनट में बहत्तर
बार धड़कती हुई
तुम्हारे नाम पे उसकी धड़कन
आज भी निरंतर !!  


रचनाकार : परी ऍम श्लोक  

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