Friday, March 14, 2014

स्वप्न का निस्र्पण

वास्तविकता मेरे बेहद करीब थी
बेहद प्यारी खूबसूरत निखरी सी
दिलकश सा इत्मीनान था जिसमे
मगर उस वास्तविकता के पीछे भी थी
इक लम्बी पंक्ति
जो मुझसे वाबस्ता नहीं थी
लेकिन मुझे वो जानना था
जिससे बेखबर थी मैं
कुछ ज्यादा गूढ़ा रहस्यमयी
जो इक कारण बन जाए
मुझे छूती हुई सिलसिले को
अज़नबी बनाने का
फिर मैंने समेटना आरम्भ किया
जो मेरा था उसे
और
वहाँ जा पहुंची जो खत्म था
जिसका कोई वज़ूद ही नहीं था
वो सच हो सकता होगा
मगर
अब बेमायने था बेकार था
उसके ऊपर था वो सत्य जो मुझे दिखा
और
मेरा ही था हमेशा
पर शायद समझ का ज्यादा उठाव
मुझे गिराने वाला है क्या पता ?
मैं कोहरा छटने कि प्रतीक्षा में थी
कि रात हो गयी सब अँधेरा हो गया
कैसी जिद्द थी ये आखिर
जिसने सुन्दर चित्र का
चेहरा बिगाड़ के रख दिया था
शुक्र है ये स्वप्न था
इसे सच होने दिया जाता
तो कितनी ही सत्य को रोंदने का
मलाल हमेशा रह जाता मुझे !!


रचनाकार : परी ऍम श्लोक

 

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