Monday, April 7, 2014

"प्राप्ति"

वक़्त ने
बड़ी निर्दयिता के साथ मुझे
हालाती आग के
चंगुल में झोंक दिया
और
मैं निरंतर तपती रही
इस दौरान मैंने
उस भट्टी में देखा 
कोयलो को नीला होते 
लकड़ियों को काला होते
पत्तियो को झुलसते
मिट्टियों को पकते हुए
सब कुछ समाप्त होते
और उनकी पीड़ा को
भांपती चली गयी हर पल के साथ 
अन्देशा था कि शायद
मैं भी राख मात्र हो जाउंगी
क्यूंकि पीड़ादेह है ये आँच
लेकिन
मैं हर ताप के साथ
पीली होती चली गयी
उस आग ने मुझे सोना बना दिया था
जिस आग में नजाने
कितने शून्य हो गए थे !!

रचनाकार : परी ऍम श्लोक
 

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