Wednesday, April 23, 2014

"वश कि बात नहीं"

तुम जीवन हो
नजाने कितने रहस्य लिए
चलते हो
अपनी गठरी में साथ
जब इन्हे परोसते हो तो
सबको हैरान कर देते हो

सोचती हूँ कि
मै तुम्हे समझती हूँ
किंतु मैं जितना तुम्हे समझती हूँ
तुम उससे कई कदम
आगे बढ़ जाते हो
तुम अभिव्यक्त नहीं करते
हमेशा मौन रहते हो
या
यूँ कहो तुम इशारा करते हो
किन्तु हमें इसका आभास नही होता
परन्तु तुम्हारा प्रभाव हममे चीखता है
कभी सुख का गुलशन खिल जाता हैं
तो कभी दुःख में अश्रुओ का सागर

हर दिन तुम्हारे अध्याय कि
कहानी परवर्तित होती हैं
तुम्हे लिख के
सबको व्यक्त कर पाना भी
घटनाओ कि प्रेरणा से
ज्यादा कुछ नहीं

मैं तुम्हे जानती तो हूँ मगर ...

सच कहूँ तो
यदि मैं कई वर्षो तक
तुम्हारी आँखों में
बिना पलक झपके झांकती रहूँ
तब भी
तुम्हारी मंशा को जान पाना
मेरे वश कि बात नहीं है !!!


रचनाकार : परी ऍम श्लोक

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