Thursday, April 17, 2014

!! दाग वो छुड़ाने लगी !!

मैं रगड़ के दामन से दाग वो छुड़ाने लगी
मेरा कसूर क्या था दुनिया उंगलियाँ उठाने लगी

अपने गिरेहबान में किसी ने झाँका ही नहीं
तुम्हारे रचे माहौल से मैं हर वक़्त छलि जाने लगी

वो दर कहाँ था जहाँ फब्तियां नहीं सुनी मैंने
ये हवाओ की हलचल भी अब तो मुझे डराने लगी

ये दुपट्टा भी किसी काम का नहीं रहा अब तो
इन आदमियो की नज़र सीने के पार जाने लगी

घुटन बहुत है कोई तो बाहर निकाले मुझे
अब छत की बुलंदियों से भी मैं खौफ खाने लगी

कोई चीज़ तो नहीं हूँ मुझे बेच-खरीदा जाए
ये वज़ूद जाने क्यों मुझे जिल्लत महसूस कराने लगी

ज़ोर क्यों तुम्हारा मुझपे ही चलता है
कभी घरेलु हिंसा से तो कभी कोख में मारी जाने लगी

सुनो ! मुझसे तो आगे अब नहीं लिखा जाता
'श्लोक' की कलम तकलीफ से डगमगाने लगी


Written By : परी ऍम 'श्लोक'



 

No comments:

Post a Comment

मेरे ब्लॉग पर आपके आगमन का स्वागत ... आपकी टिप्पणी मेरे लिए मार्गदर्शक व उत्साहवर्धक है आपसे अनुरोध है रचना पढ़ने के उपरान्त आप अपनी टिप्पणी दे किन्तु पूरी ईमानदारी और निष्पक्षता के साथ..आभार !!