Thursday, May 1, 2014

!! जिंदगी मेरे पहलु में !!


फिर ये शाम ढलने को आई है
तन्हाई फिर पलने को आई हैं

इन पन्नो की तकदीर अजीब है
मेरे अश्को से गलने को आई हैं

ये अँधेरा तो साय-साय करता है
बात बनी हुई बिगड़ने को आई है

मैं खुद ही लड़खड़ा की गिरी हूँ 
और जिंदगी है की
मेरे पहलु में संवरने को आई है!!



ग़ज़लकार : परी ऍम 'श्लोक'

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