Tuesday, July 8, 2014

ख़ुशी का गिरोह हूँ गम को चुराता हूँ...

ख़ुशी का गिरोह हूँ गम को चुराता हूँ...
काँटों की राह पर चल के भी मुस्कुराता हूँ ..

जब होता हूँ अकेला....शब्दों की महफ़िल बुलाता हूँ..
मेरे-तेरे अहसास घोल के इक नई ग़ज़ल बनाता हूँ..

टूटे-बिखरे अरमानो को चुन-चुन के उठाता हूँ..
अस्थि-पिंजर जोड़ के नया ख्वाब फिर से सजाता हूँ ..

पीछे जो हुआ हो गया यादाश्त कम है भूल जाता हूँ..
कल से सीख कर नयी दिशा कि ओर बढ़ जाता हूँ ..

जिंदगी अनमोल है हर दिन को जिए जाता हूँ...
दुश्मनी किसी से नहीं हाथ दोस्ती का ही बढ़ाता हूँ..

आवारा भंवरा हूँ गुलशन-गुलशन प्यार बाँटता हूँ..
फूलो कि पंखुड़ियों में रंगत और मिठास छोड़ आता हूँ..


______परी ऍम 'श्लोक'

2 comments:

  1. पीछे जो हुआ हो गया यादाश्त कम है भूल जाता हूँ..
    कल से सीख कर नयी दिशा कि ओर बढ़ जाता हूँ ..

    जिंदगी अनमोल है हर दिन को जिए जाता हूँ...
    दुश्मनी किसी से नहीं हाथ दोस्ती का ही बढ़ाता हूँ..
    ​सार्थक और प्रभावी

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