Tuesday, July 29, 2014

नहीं........... अब नहीं !!

धीरे-धीरे तुम
सम्मान की ऊंचाइयों से
नीचे गिरते जा रहे हो
और आहिस्ता-आहिस्ता
मैं उठने की
कोशिश कर रही हूँ

अपने आपको पाने को
साफ़ कर रही हूँ दर्पण
धुंध की तरह जम गए हो
जिसपर तुम

गीत गाने के अलावा
हाँ जी की बिंदु के पार
अपनी आवाज़ को
नए आयाम देना चाहती हूँ
अपने आपको
इक पहचान देना चाहती हूँ

लम्बे समय से सोते हुए
थक चुकी हूँ
अब जागना चाहती हूँ
हमेशा हमेशा के लिए
मेरे साथ हो रही हिंसा को
कब्र में सुला देने को

सुनो!
तुम्हारे इरादो पे
नाचने का चलन
अब छोड़ रही हूँ
पांजेब बनी है बेड़ियां
इन्हे भी तोड़ रही हूँ
इससे ज्यादा
सहन की गुंजाईश मुझमें
नहीं अब नहीं !!!

------------------परी ऍम 'श्लोक'

9 comments:

  1. तुम्हारे इरादो पे
    नाचने का चलन
    अब छोड़ रही हूँ
    पांजेब बनी है बेड़ियां
    इन्हे भी तोड़ रही हूँ
    इससे ज्यादा
    सहन की गुंजाईश मुझमें
    नहीं अब नहीं !!!
    वाह बहुत ही बढ़िया रचना परी जी.

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  2. सकारात्मकता की ओर बढ़ती इस सोच और इन कदमों का स्वागत है ! बहुत सुन्दर रचना और अशेष शुभकामनाएं !

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  3. पांजेब बनी है बेड़ियां
    इन्हे भी तोड़ रही हूँ

    और फिर आज़ाद होकर खुले आसमां मे उड़ने की बात ही कुछ और होगी।

    सादर

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  4. लम्बे समय से सोते हुए
    थक चुकी हूँ
    अब जागना चाहती हूँ
    हमेशा हमेशा के लिए
    मेरे साथ हो रही हिंसा को
    कब्र में सुला देने को
    सुन्दर अभिव्यक्ति

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  5. कल 01/अगस्त/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद !

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  6. आज़ादी जब मिले अच्छा है .... उसे झपट लेना चाहिए ....

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  7. सबसे ज्यादा इस पोस्ट के picture ने ध्यान आकर्षित किया । बिल्कुल नृत्य की भांति भावपूर्ण कथ्य ।

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